दादा! ऑन युवर बर्थडे...

तुम्हारी यादों में घिरी
तुम्हारी बेटी
अक्सर फफक पड़ती है
मुझसे सवाल करती है
विभिन्न तरह के सवाल
मैं निरुत्तर, असहाय, बेबस
क्या समझाऊं उसे
जबकि मैं खुद असमंजस में हूँ |

हालाँकि हम कभी मिल नहीं पाए
एक छोटी औपचारिक भेंट तक नहीं
फिर भी अनेक तस्वीरें देख कर
एक चेहरा बनाया है तुम्हारा
पर कभी कोई आवाज़ नहीं जोड़ पाया
उस चेहरे से |

कई दफ़ा उस से पूछ्ता हूँ
खुद से पूछ्ता हूँ
" क्या तुम्हें मैं पसंद आता
क्या हमारी आपस में बनती
क्या होता हमारी परिचर्चा का विषय?"
हर बार एक चुप्पी मिलती है जवाब में
और मैं उसे सहेज कर रख लेता हूँ
दिल के किसी कोने में
तुम्हारा आर्शीवाद समझ कर ||

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