तुम

अनजान से एक पल में
तुम याद आयी
और याद आए कुछ पल|
कई चेहरे
कुछ नये कुछ पुराने
कई यादें
कुछ खट्टी कुछ मीठी|
सोचा कुछ सवाल करूँ
कुछ खुद से
कुछ तुम से
फिर सोचा
ये सिलसिला भी अच्छा है
न किसी की नज़र में गिरने का ख़ौफ़
न किसी के दिल में उतरने की ख्वाहिश|

Comments

  1. Loved it, especially the last two lines. ख़ुद्दारी? Or Panglossian pessimism? Kidding. ;)

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